वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
१५ जनवरी २०१७
महर्षि रमण केंद्र, दिल्ली
श्लोक 4 .11:
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥ ११ ॥
हे अर्जुन ! जो भक्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं, मैं भी उनको उसी प्रकार भजता हूँ; क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार
से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं।
प्रसंग:
कृष्ण ऐसा क्यों कह रहे है "जो मुझे जिस रूप में भजता है , मै भी उसे उसी रूप में भजता हूँ" ?
जो भरम उसे भरम, जो परम उसे परम का क्या आशय है?
हमारी जीवन में कृष्णत्व का क्यों अभाव है?
परम पर हमेशा इल्जाम क्यों ?